क़िस्सागोई: एक टोकरी-भर मिट्टी -माधवराव सप्रे

क़िस्सागोई: एक टोकरी-भर मिट्टी -माधवराव सप्रे   विवेचना: “एक टोकरी-भर मिट्टी” — माधवराव सप्रे मूल भाव:यह कहानी केवल एक झोंपड़ी की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह आत्मसम्मान, स्मृतियों, संवेदनाओं और नैतिक जागरण की अद्भुत प्रस्तुति है। एक ओर शक्तिशाली ज़मींदार है जो धन और अधिकार के बल पर किसी की जमीन हड़प लेना चाहता है, … Continue reading क़िस्सागोई: एक टोकरी-भर मिट्टी -माधवराव सप्रे