आज की कविता: ‘ उड़ान’

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आज की कविता: ‘ उड़ान’


जीवन में कुछ सपने थे।
जो मैंने अपने लिए देखे थे।
चारों ओर दौड़ती तो ऐसा प्रतीत होता था,
कि क्यों ना दौड़ने की जगह उड़ान भरूं।
अल्हड़ थी नहीं जानती थी,
उड़ना बड़ा मुश्किल होता है। क्योंकि मैं एक लड़की थी।
परों को नोच दिया जाता है, बोलकर नहीं फुसला कर।
बचपन से ही जब मां,
उस नन्ही परी को उड़ने के सपने दिखाती है।
नहीं पता होता है उस मां को,
कि जिसको उड़ने के लिए कह रही है,
वह तो चल भी नहीं पाएगी।
दादा, पापा,भाई सभी तो, हथियार लेकर बैठे रहते हैं। धीरे-धीरे,
उसके पंख कुतरते रहते हैं।
फिर जब वह,
जवानी की दहलीज पर कदम रखती है।
और एक नई दुनिया में पहुंचती है, अपने मन में कुछ उमंग लेकर, कुछ सपने लेकर।
फिर एक बार सोचती है,
कि क्यों ना फिर से उड़ा जाए। जख्मी है, घायल है,
पर मन में दृढ़ विश्वास है।
कि कोशिश तो करूं,
और जीवन में आता है एक मोड। मुलाकात होती है,
किसी साथी से।
जो उसे सपने दिखाता है,
कि तुम उड़ो, उड़ो और खूब ऊपर उड़ो।
वह उसकी बातों में आ जाती है, अपना जीवन उसको सौंप देती है।
फिर सिलसिला शुरू होता है, उन पंखों को कुतरने का। समझौता करती रहती है,
पर उड़ नहीं पाती।
मां बन जाती है,
एक बेटे की।
फिर जरूरत के हिसाब से,
उसे उड़ान भरने के लिए कहा जाता है।
उड़ तो रही है,
पर पतंग की तरह।
डोर उड़ाने वाले के हाथ में है।
जब उसकी इच्छा होती है,
तब वह उसे छोड़ता है,
और जब इच्छा होती है,
तब वापस खींच लेता है।
वह उड़ती रहती है,
इस गलतफहमी में,
कि देर से ही सही,
कम से कम उड़ने का मौका तो मिला।
और फिर अचानक एक दिन, एहसास होता है,
कि उसको उड़ाने के पीछे तो स्वार्थ था।
जिसे वह अपना जीवन साथी मानती थी।
उसने तो उसे इस काबिल ही नहीं छोड़ा कि,
उड़ना तो छोड़िए,
वह चल भी सके!
लहू लुहान होकर ,
अपने अस्तित्व को समेट कर, एक कोने में चुपचाप पड़ी रहती है।
और सोचती है कि ,
क्या अब मैं कभी चल भी पाऊंगी?
तभी एक आशा की किरण नजर आती है।
उसका अंश उसको जाकर के उठाता है।
खुले आसमान में उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित करता है।
आसमान दिखाता है,
और कहता है।
मां! वह आसमान है।
इस खुले आसमान में आप उड़ो।
इतनी ऊंची उड़ान भरना,
कि जिन्होंने भी तुम्हारे पंख नोचें हैं।
वह तुम्हारी उस परछाई तक भी नहीं पहुंच पाए।
तुम उड़ो और खूब उड़ो ।
मां ने जो ममता अपने बेटे पर लुटाई थी।
आज बेटे ने खुला आसमान देकर।
उस ममता का कुछ अंश लौटा रहा है।
मैं उड़ रही हूं।
मेरे लाल साथ में तुझे भी उड़ाना चाहती हूं ।
उस ऊंचाई तक ।
जहां किसी की नजर हम तक ना पहुंच सके।

सीमा पारीक
पुष्प 🌹
स्वरचित 🖊️

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