

आज की कविता: ज़ख्म
वह लड़की सीधी सी थी।
कुछ सपने थे, जिन्हें संजोए बड़ी हुई थी।
दोस्तों की उसको पहचान नहीं थी।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
सपने सुनहरे बुन रही थी।
पर नहीं जानती थी कि डोर उलझी थी।
जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा तो उड़ान भरने को थी।
पर पंख बेजान थे और हौंसले पस्त थे।
डोली उठी तो फिर उमंग जागी थी।
हां, जीवनसाथी से उम्मीद लगाए बैठी थी।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
खिले गुलशन में फूल पर महकने से पहले झर गए।
उसकी ममता को तरसी जिंदगानी थी।
इल्ज़ाम लगे उस पर, पर वह उफ़ नहीं कर पाई थी।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
जीवन चक्र चल रहा था जिसमें वह घूम रही थी।
आगे बढ़ते हुए,जख्म खाते हुए, अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए, चली जा रही थी।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
हर बार अपने आप को साबित कर रही थी।
वह सच में गृहस्थ जीवन सुखमय बना रही थी।
पर क्या छूट गया इस आपाधापी में समझ नहीं पा रही थी।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
जीवन चल रहा था,चल रहा था,छल रहा था।
नया शहर, नया जीवन,नए लोग मिल रहे थे।
और वह विश्वास पर उनके साथ चल रही थी।
कब छल कपट से उसे सहलाने लगा, जीवन छलिया उसके साथ रह रहा था।
वह पगली लड़की सीधी सी थी समझ नहीं पा रही थी।
और उसकी पीठ लहुलुहान की जा रही थी।
सांप आस्तीन में पाले जा रहे थे।
और पालने वाले उसके ही हमराज़ थे।
वह परिवार के लिए मिट रही थी, और यह ही उसकी भूल थी।
वह लड़की सीधी सी थी।
जब होश आया तो पूरी तरह लुट चुकी थी।
जो गलतियां कर रहे थे, उसे समझा रहे थे।
समझौता करने पर मज़बूर कर रहे थे।
क्योंकि वह लड़की सीधी सी थी।
पर आज आत्मा उसकी लहुलुहान थी।
जो खंजर उसको गहरा ज़ख्म दे रहा था।
वह कोई और नहीं उसका अपना था।
आज वह नहीं मर के भी मर गई थी।
हां, सच वह लड़की सीधी सी थी।
सीमा पारीक ‘पुष्प’
स्वरचित ✒️
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