आज की कविता


ज़िन्दग़ी
ज़िन्दगी किस मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है?
चारों तरफ़ तन्हाई, तन्हाई और तन्हाई है।
हमसफ़र शब्द बेमानी हो गया है।
झूठ,छल,कपट का पर्याय बन गया है।
जीवन जिसके नाम कर चुके थे।
वो हमसे कब से दूर जा चुके थे।
हर लम्हा उसे अपना माना हमने।
वह किसी और को अपना माने।
दिल टूट गया है और बिखर गया है।
संगदिल सनम ने झकझोर कर रख दिया है।
पहले संभाल नहीं पाई वजूद खत्म हो गया माना।
फिर संभाला खुद को जीवन में आगे है बढ़ते जाना।
कुछ जिम्मेदारियां निभाती जो आई थी।
उनको पूरा करने को कसम मैंने खाई थी।
मंजिल मिलेगी यह मुझे यकीन है।
मैं जानती हूं कान्हा मेरे करीब है।
बस कृष्णा मेरी लाज बचाने तू आते रहना।
कभी मैं कमज़ोर पड़ नहीं जाऊं हिम्मत बांधें रखना।
सीमा पारीक
पुष्प
स्वरचित 🖊️
