कविता: आक्रोश (पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की निंदा हेतु आतंकवाद विरोधी कविता)
कविता: आक्रोश


बस करो यह नफ़रत के खेल।
कितना बहाओगे खून?
हो गई है रेल- पेल।।
जाति पूछते हो बुज़दिलों इंसानियत को खोकर ।
सीना छलनी कर दिया ,
नफ़रत में मतवाले होकर।।
भूल कर चुके हो
नादान हो तुम।
कौन तुम्हें बचाएगा?
तू कहां भाग कर जाएगा?
तुम इस मुंह को कहां छुपाओगे?
हिंदू को तुमने ललकारा है।
बस उल्टी गिनती शुरू करो तुम।
अब कहीं नज़र नहीं आओगे।
हमको है उस घड़ी की राह,
जब सेनाएं जुट जाएंगी।
चुन-चुनकर आंतकवादी संगठन वो तेरे परखच्चे उड़ाएगी।
लेगा बदला एक- एक बच्चा।
यह हम सबका तुझसे वादा है।
तूने शेर के घर में हाथ दिया है।
वो शेर तूझे ना छोड़ेगा।
तू इतराता है अपने नरसंहार पर।
तू अब मौत को भी तरसेगा।
स्वरचित
सीमा पारीक ‘पुष्प’
अध्यापिका (हिंदी)
रायपुर छत्तीसगढ़
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