कविता “गौरेया”

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कविता

“गौरेया”

बचपन का याद है वह झरोखा।
जहां बिछाकर कागज बनाया था तेरा बिछौना।
वह गर्मी की छुट्टियां,
जब तपती थीं घर की पट्टियां ।
तू तिनका लेकर आती थी,
और घोंसला अपना बनाती थी।
मिट्टी के कोरे सकोरे में दाना- पानी तू पाती थी।
मेरा बचपन याद आया जब तू आंगन में आई है।
झूम उठा मेरा दिल गौरैया जब आज फिर तू चहचहाई है ❤️
मेरे घर में भी हर सुबह होती है।
गौरैया की चहक से,
हर सु गुंजार होती है।
जब फड़फड़ाने लगते हैं पंख,
उस नन्ही परी के।
तो देती है उमंग मुझे भी,
कि आ जाएं कितनी भी बाधाएं, भर उड़ान और छू ले आसमां को।
देखा है मैंने तेरी मेहनत को
तेरे तिनकों को जुड़ते हुए,
और….. और……
फिर टूटते हुए तेरे नीड़ को।
पर ऐ री गौरैया!
ना तू रोती ना झुकती है,
नाही हिम्मत हारती।
देख कर तेरे हौंसले बुलंद,
भर जाती है मुझमें भी हिम्मत,
और तुझ जैसी मेहनतकश,
बनने को हो जाती हूं तत्पर ।
गौरैया तू हमेशा चहकना,
मेरे आंगन में।
देना हौंसला मेरे बेटे को,
और कहना उसको,
कि हार कभी ना मानो,
कोशिश करने से हर मंजिल मिलती है।
जब तक यह जहां रहेगा।
गौरैया तेरा चहकना रहेगा।

सीमा पारीक ‘पुष्प’
      स्वरचित ✒️


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