ग़ोंचा /- रथयात्रा/ दूज डोल
विधा – दोहा छंद
उत्सव गोंचा पर्व का, बस्तर की पहचान।
दर्शन आदि संस्कृति का,देवों का सम्मान।।
छै सौ वर्षों पूर्व का ,पर्व आज प्राचीन।
चर्चित देश – विदेश में,रथ – पथ कला – प्रवीन।।
नृप पुरुषोतम देव से, सम्बंधित इतिहास।
परंपरा से मानते , रथयात्रा उल्लास।।
रथयात्रा के पर्व में, वनवासी के साथ।
दर्शन – सुख भ्राता -बहन,जय जय हैं जगनाथ।।
स्वागत में भगवान के, तुपकी का हो शोर।
सौ तोपों के नाद से,जन – मन भाव विभोर।।
भ्रात -बहन करते भ्रमण,रथयात्रा शुभ योग।
कोवा मधुर प्रसाद में, गजामूँग का भोग।
रथयात्रा शुभकामना, दूज शुक्ल आषाढ़।
बस्तर – संस्कृति सभ्यता,अद्भुत ज्ञान – प्रगाढ़।।
नोट
तुपकी – बाँस की बंदूकनुमा दिव्य अस्त्र को कहते हैं ।
बस्तरकला का अनोखा दर्शनहै।
इस तुपकी से जगन्नाथ स्वामी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
कोवा – पके कटहल के बीज से लिपटा मीठा गुदेदार परत है।
गजामूँग भीगे हुए खड़े मूँग में शक्कर मिश्री घुला । खड़ा चना भी होता है ।
अमितारवि दुबे©®
छत्तीसगढ़
