श्रमिक दिवस विशेष कविता: श्रमिक की प्रार्थना सीमा पारीक (पुष्प)

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आज की कविता:

श्रमिक की प्रार्थना


खाने को नहीं चना चबेना।
पहरन को नहीं जामा है।
बस एक ही विश्वास है।
संग में मेरे रामा है।

बच्चे बिलख बिलख कर सो गए।
बर्तन खाली थे वे लुढ़क गए। आंखें सूखी आंसू ना ढ़रके ।

अरमां दिल में भटक गए।
चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ है।
चूहे भी घर लौट चलें।
सूपा खाली पड़ा हुआ है।
ऊँखल धान को ताक रहा है।

आशा और विश्वास की डोर भी अब टूट गई।

ए मेरे मालिक तू ही बता अब सांसे कब तक यूं ही चलेगी?

सूखा मुँह घरनी का मेरा। क्या उसको विश्वास दूं ?
तेरा नाम हो बदनाम मेरे मालिक उससे पहले क्या मैं अपनी जान दूं?

तेरी रहमत ऐ मेरे मालिक दिखा अब मुझ गरीब को तू।

साँसे टूटे,तन मेरा टूटे पर विश्वास ना टूटने दे।

बच्चे मेरे जब जागे मैं अन्न उन्हें बस दे पाऊं।
चूल्हा मेरा फिर जल जाए चूहों को दाना दे पाऊं।

घरनी का विश्वास मैं दाता, मेरा है विश्वास तू।

सब कुछ छूटे, सब कुछ टूटे, पर तेरा विश्वास ना टूटन दे ।

दे दे दाता चना चबेना।
कर ले यह विश्वास सब।
कि अंग में मेरे रामा है


सीमा पारीक
(पुष्प)


Photo Credit:

सुश्री संगीता पाल

 

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