अंतरिक्ष की उड़ान में अड़चन: ISRO का प्रक्षेपण विफल


नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को उस समय बड़ा झटका लगा जब उसका नवीनतम उपग्रह प्रक्षेपण मिशन असफल हो गया। शनिवार की सुबह श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया यह मिशन तकनीकी खामी के चलते अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सका। यह असफलता देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की गति पर अस्थायी विराम जरूर डाल सकती है, लेकिन ISRO के वैज्ञानिक इसे एक सीख के रूप में देख रहे हैं।
“इ” से ISRO: तकनीकी खामी बनी मिशन विफलता का कारण
ISRO के अधिकारियों ने जानकारी दी कि प्रक्षेपण के कुछ मिनटों बाद ही यान के प्रोपल्शन सिस्टम में गड़बड़ी आई, जिससे वह निर्धारित कक्षा में प्रवेश नहीं कर सका। यह मिशन एक महत्वपूर्ण संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के उद्देश्य से था, जो भविष्य में भारत की डिजिटल कनेक्टिविटी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाता।
लॉन्च के बाद ISRO प्रमुख एस. सोमनाथ ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया, “हमने मिशन को लेकर व्यापक तैयारी की थी। हालांकि, अंतिम क्षणों में एक अप्रत्याशित तकनीकी समस्या आई, जिससे हमें मिशन को विफल घोषित करना पड़ा। हमारी टीमें अब उस गड़बड़ी की विस्तृत जांच कर रही हैं।”
इस मिशन की असफलता के बावजूद, ISRO का पिछला रिकॉर्ड उल्लेखनीय रहा है। खासकर हाल ही में सफल ‘चंद्रयान-3’ और ‘आदित्य-एल1’ मिशन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं को सिद्ध किया है।
वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास कायम, अगली उड़ान की तैयारी शुरू
हालांकि यह विफलता एक झटका है, परंतु ISRO के वैज्ञानिकों का आत्मविश्वास डगमगाया नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरिक्ष मिशनों में विफलताएं आम हैं और वे भविष्य की सफलता का आधार बनती हैं।
इस मिशन के विफल होने के बावजूद ISRO की आगामी योजनाएं जैसे गगनयान और वीनस मिशन ट्रैक पर बनी हुई हैं। वैज्ञानिक अब इस तकनीकी खामी के समाधान पर कार्य कर रहे हैं ताकि अगली बार कोई भी चूक न हो।
देशवासियों और विशेषज्ञों ने सोशल मीडिया पर ISRO के प्रयासों की सराहना करते हुए इसे “एक कदम पीछे, दो कदम आगे” की नीति बताया है।
ISRO के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण क्षण जरूर है, परंतु इसके पीछे खड़ा देश और विश्व की वैज्ञानिक बिरादरी यह जानती है कि ‘इ’ यानी ISRO हमेशा से असंभव को संभव बनाने की ताकत रखता है।
