रायपुर । सकल दिगंबर जैन समुदाय के पर्युषण पर्व के दौरान अनंत चतुर्दशी पर शनिवार को उत्तम ब्रह्मचर्य दिवस पर 12 वे तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव धूम धाम से मनाया गया। जैन धर्म में दसलक्षण पर्यूषण महापर्व भाद्र शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाता हैं। प्रत्येक दिवस क्रमशः क्षमा मार्दव,आर्जव,शौच,सत्य, संयम, तप,त्याग,आकिंचन,ब्रह्मचर्य जैसे अनन्त फलदायी गुणों को धारण कर अनन्त कर्मो की निर्जरा कर अनंत पुण्य का आश्रव कर जीवन को वैराग्य की ओर अग्रसर किया जाता है।


6 सितंबर, भाद्रपद शुक्लपक्ष अनंत चतुर्दशी वीर निर्वाण संवत 2551 को आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में पार्श्वनाथ भगवान की बेदी के समक्ष श्रावक गणों ने 12 वे तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान का मोक्ष कल्याणक दिवस पर प्रातः काल श्रीजी को पाण्डुक शीला में विराजमान कर शुद्ध प्रासुक जल शुद्धि मंत्र पढ़ कर शुद्ध किया गया। सभी उपस्थित श्रावकों ने बारी बारी रजत कलशों से श्रीजी का प्रासुक जल से जलाअभिषेक किया। अभिषेक उपरांत सम्पूर्ण विश्व में सुख समृद्धि शांति की कामना हेतु शांति धारा की गई। शांति धारा कर सभी ने भगवान की समता भाव के साथ भक्तिमय आरती कर नित्य नियम पूजा के साथ अष्ट द्रव्यों से निर्मित अर्घ्य से दश लक्षण पूजा,सोलह कारण पूजा, वासुपूज्य भगवान की पूजा के साथ बारहवें तीर्थंकर वासु पूज्य भगवान का मोक्ष दिवस मनाया। विशेष पूजा कर ॐ ह्रीं भादपदशुक्लचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा मंत्रोच्चार के साथ श्रीफल एवं निर्वाण लड्डू चढ़ाया। वासू पूज्य भगवान के जयकारों से पूरा जिनालय गुंजायमान हो गया
पूर्व उपाध्यक्ष श्रेयश जैन बालू ने बताया कि पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य दिवस के दिन हमें काम, क्रोध, द्वेष, ईष्र्या आदि से खुद को दूर रखना चाहिए। आत्मा में रमना और रहना ही उत्तम ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य धर्म आग को पानी और शैतान को इंसान बनाता है। हमें अपनी इच्छाशक्ति का भी मजबूती के साथ पालन करना चाहिए। इसके लिए मन का नियंत्रण में रहना बहुत जरूरी है। पर्यूषण पर्व मोक्ष मार्ग का अनुगामी बनाता है। हमारी आतंरिक शुद्धि होती है। तपस्या, ज्ञान और संयम की जड़ ब्रह्मचर्य ही है। एक तरह से पर्यूषण पर्व प्रतिवर्ष हमारे भीतर दया, क्षमा और मानवता को जगाता है। जैन धर्म मे अनंत शब्द से आशय यह भी है कि अनंतानुबंधी कषायों का शमन कर, अनंत पुण्य का अर्जन करना। इस दिवस उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया जाता है। जैन श्रावक श्राविकाओं द्वारा व्रत-उपवास आदि रखें जाते हैं। जैन धर्म के 12 वें तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान का निर्वाण कल्याणक भी मनाया जाता है और इसी के साथ दसलक्षण पर्व का समापन हो जाता है। अगले दिन सभी समाज जन पर्यूषण महापर्व पर व्रत करने वाले तपस्वियों का पारणा करवा कर सम्मान करते है और सामूहिक रूप क्षमा पर्व मना कर जीवन पर्यंत,वर्ष भर हुए गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा याचना करते है।
