सुनील दास


राजनीति में जब देश सेवा की जगह सत्ता ज्यादा अहम हो जाती है राजनीतिक दलों के लिए देश मायने नहीं रखता है, लोकतंत्र मायने नहीं रखता है, संविधान मायने नहीं रखता है।जब पता चल जाता है कि सत्ता के किसी खास वर्ग का तुष्टिकरण जरूरी है तो तुष्टिकरण के लिए क्या नहीं किया जाता है और क्या नहीं किया गया है। पहले तो एक ही दल था जो खास वर्ग का तुष्टिकरण करता था,आज तो पता नहीं कितने दल इस काम में लगे हुए हैं कि उनका वोट मिल जाए तो हमारी सरकार बन जाए, उनका वोट मिल जाए तो हम ज्यादा सीटें जीत लें।सरकार व ज्यादा सीटों के लिए वह संविधान के विपरीत काम करने में भी उनको कोई झिझक नहीं हुई।
देश के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में एक कार्यक्रम में यह बात कही कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने देश को एकजुट करने वाले संविधान की कल्पना की थी।उन्होंने कभी ऐसे राज्य की कल्पना नहीं की थी कि जिसका संविधान अलग हो।संविधान प्रस्तावना पार्क के उद्घाटन अवसर पर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा ३७० को निरस्त करने के केंद्र के फैसले पर बरकरार रखते हुए एक संविधान के तहत एकजुट भारत के डॉ.अंबेडकर के दृष्टिकोण से प्रेरणा ली।उल्लेखनीय हैं कि देश में तुष्टिकरण करने वाली ताकतों ने मोदी सरकार के कश्मीर से धारा-३७० को निरस्त करने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी और वह चाहते थे कि कश्मीर में धारा -३७० लागू रहना चाहिए।
सीजेआई गवई के बयान से साफ जाहिर हो जाता है कि जिन लोगों ने वर्ग विशेष के तुष्टिकरण के लिए कश्मीर में धारा-३७० को लागू किया था और जिन लोगों ने आजादी के कई दशकों तक उसको कश्मीर के लिए जरूरी समझ कर समर्थन किया था।वह बाबा साहेब के विरोधी थे क्योंकि बाबा साहेब ऐसा नहीं चाहते थे और उन्होंने ऐसा ही किया और उसे देश के लिए सही भी माना। बाबा साहेब की तरह जनसंघ व भाजपा के नेता एक देश एक संविधान के समर्थक थे, वह एक देश में दो संविधान का गलत मानते थे। इसलिए उन्होंने तय कर रखा था जिस दिन उनकी मजबूत सरकार बनेगी धारा-३७० को निरस्त कर दिया जाएगा। २०१४ में मोदी सरकार के आने पर धारा-३७० को हटाने का काम प्राथमिकता से किया गया।
कांग्रेस संविधान विरोधी और बाबा साहेब विरोधी भी थी। आपातकाल लगाना संविधान विरोधी काम था, आपातकाल में संविधान संशोधन करना संविधान विरोधी काम था, आपातकाल में समाजवाद व पंथनिरपेक्ष शब्द जोड़ना संविधान विरोधी काम था। कांग्रेस ने बाबा साहेब को चुनाव में हराने का काम किया,परिवार के तीन तीन लोगों को भारतरत्न मिला लेकिन उनको बाबा साहेब काे भारत रत्न देने का ख्याल नहीं आया। आज राहुल गांधी संविधान की प्रति हाथ में लेकर घूमते हैं और खुद को संविधान के रक्षक के तौर पर पेश करते हैं, खुद को पिछड़ों व दलितों का हितैषी बताते हैं।
सही मायने में दलितों व पिछड़ों के हितैषी वीपी सिंह थे जिन्होंने बाबा साहेब का भारत रत्न देकर दलितों का सम्मान किया। मंंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिलाया। राहुल गांधी मुंहजबानी दलितों व पिछड़ों के नेता बनना चाहते हैं।वह चाहते हैं कि दलित व पिछडे़ पहले की तरह उनको वोट करें ताकि वह ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बना सके और कांग्रेस व सोनिया गांधी का राहुल गांधी को पीेएम बनाने का सपना पूरा हो सके। दलित व पिछड़े जानते हैं कि कौन उनका असली नेता और कौन नेता बनने का दिखावा कर रहा है। पीएम मोदी का दस साल के शासन में दलित व पिछड़े पहले से ज्यादा समझदार हुए है। वह जो भी फैसला कर रहे हैं सही फैसला कर रहे हैं।
