गलती इसलिए मान रहे नुकसान नहीं होना है


सुनील दास
राजनीति में अगर नुकसान न हो रहा हो और फायदा हो रहा हो तो नेता मान लेता है कि उससे गलती हुई है, उसकी पार्टी के नेताओं से गलती हुई है, उसकी पार्टी से अतीत में गलती नहीं हुई है कई गलतियां हुई हैं।यह कोई साहस का काम नहीं है।यह तो अवसरवादिता है। इससे नेता का कद बड़ा नहीं होता है, वह कोई महान नेता नहीं बन जाता है। महान नेता तो वह होता है जिसमें जब गलती हुई है तब देश या किसी समाज के सामने जाकर गलती स्वीकार करने का साहस हो। जिस वक्त गलती हुई, उसी वक्त गलती स्वीकारने का साहस सराहनीय होता है, उसकी सराहना सब करते हैं।सब कहते हैं कि हां इस आदमी में साहस है यह स्वीकार करने का कि उसकी पार्टी के लोगोंं ने गलत किया है।
किसी पार्टी के लोगों ने १९८४ में अक्षम्य गलती की और उस पार्टी का कोई नेता ४० साल बाद स्वीकार करने की हिम्मत करे कि हां मेरी पार्टी से अतीत में एक नहीं कई गलतियां हुई हैं तो यह कोई तारीफ करने वाला काम नहीं है। राहुल गांधी ने ऐसा किया है,पिछले माह वह अमरीका के दौरे पर गए थे,तब उन्होंने ब्राउन विश्वविद्यालय के वाटसन इंस्टीट्यूट फार इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स पर भाषण दिया था।यहां एक सिख छात्र ने १९८४ के सिख दंगों के बार में एक सवाल किया था तो राहुल गांधी ने पहले यह कहा था कि वह उस दौरान राजनीति में नहीं थे लेकिन सिख दंगों पर पार्टी की गलतियों को वह स्वीकार करते हैं।इतना ही नहीं उन्होंने इस मौके पर यह भी कहा कि उनकी पार्टी से अतीत मेें जो भी गलतियां हुई हैं,वह मानते हैं कि गलती हुई है।
ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठना स्वाभाविक है कि राहुल गांधी सिख दंगों के चालीस बाद क्यों मान रहे हैं कि उनकी पार्टी से गलती हुई थी।वह इसलिए मान रहे हैं कि अब गलती मानने से पार्टी को कोई राजनीतिक नुकसान नहीं होने वाला है। राहुल गांधी को भी तो राजनीति में आए बीस साल हो गए हैं,बीस साल में उनको क्यों नहीं लगा कि सिख दंगे कांग्रेस पार्टी की गलती के कारण हुए थे। उन्होंने बीस साल में क्यों नहींं माना यह उनकी पार्टी की माफ न करने वाली गलती है।क्योंकि उनके बीस साल में दस साल कांग्रेस सत्ता में थी, कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस की गलती स्वीकारने का तो सवाल ही नहीं उठता है।
कांग्रेस सत्ता में रहती है तो वह मानती नहीं है कि उसके कभी कोई गलती हुई है।कांग्रेस तो मानती है कि वह गलती करती नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस के किसी नेता ने २०२४ तक कभी माना ही नहीं उसकी पार्टी से कोई गलती हुई है। कांग्रेस नेता मानते ही नहीं है, उनकी पार्टी से कोई गलती हुई है तो किसी नेता के गलती स्वीकारने का सवाल ही नहीं उठता था। राहुल गांधी कहते है कि वह उस दौरान नहीं थे, यानी राजनीति में नहीं थे,लेकिन देश में थे,गांधी परिवार का हिस्सा तो थे। कभी ऐसी कोई खबर नहीं आई कि राहुल गांधी या सोनिया गांधी, राजीव गांधी सिख दंगों को पार्टी की गलती मानते हैं। राजीव गांधी ने सिख दंगों पर जरूर कहा था कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।
राहुल गांधी में हिम्मत है क्या कि वह आज कह सकें कि उनके पिता ने सिख दंगों पर जो कुछ कहा था वह गलत कहा था। देश के लोग व सिख समाज तो आज भी मानता है कि राजीव गांधी ने जो कुछ कहा था वह गलत कहा था। उन्होंने तो सिख दंगों को कांग्रेस की गलती मानने की जगह एक तरह से इंदिरा गांधी की हत्या की स्वाभाविक प्रतिक्रिया माना था। इंदिरा गांधी की हत्या क्यों हुई थी, पूरा देश जानता है, उनकी हत्या उनके सिख अगंरक्षकों ने की थी। दो सिख अंगरक्षकों की गलती की सजा पूरे सिख समुदाय को दी गई।तब देने वालों ने इस सजा माना था।
पता नहीं कितने सिख दिल्ली व देश भर में मारे गए थे, कितने सिखों की दुकानें, घर लूटे गए थे।तब मारने वाले और सिखों को लूटने वाले सजा दे रहे थे।उस दौर के लोगों ने देखा था कि इस घटना का एक पार्टी के लोगों को कोई अफसोस नहीं था क्योंकि तब पार्टी केलोगों को लगा था कि उन्होंने दिल्ली या देश में जो कुछ सिखों के साथ किया था,सही किया था। आज भी सिर्फ राहुल गांधी को लगता है कि दिल्ली दंगा पार्टी की गलती थी, वह भी देश में नहीं विदेश में जाकर दिल्ली दंगों को गलती स्वीकार कर रहे है। वह इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि इस घटना के कारण जो नुकसान पार्टी को होना था, वह हो चुका है, अब इस घटना को गलती मान लेने से कोई नुकसान तो होगा नहीं,इसलिए राहुल गांधी के गलती स्वीकारने का कोई महत्व नहीं है।
चालीस साल बाद गलती स्वीकारना यह कोई साहस का काम नहीं है। बल्कि उनकी पार्टी उनके गलती स्वीकारने को भी बड़े साहस का काम बताकर उनको देश का महान नेता कह सकती है।वह कह सकती है कि जो अपनी या पार्टी की गलती स्वीकार करता है,वह महान नेता होता है, राहुल गांधी ने पार्टी की गलती स्वीकार की है, इसलिए राहुल गांधी महान नेता हैं। कई कांग्रेस नेता तो मौका लगे तो पीएम मोदी से राहुल गांधी की तुलना कर देश का बता सकते हैं कि राहुल गांधी पीएम मोदी से बड़े मन के नेता है, वह गलती हुई तो स्वीकारते है, पीएम मोदी तो बड़ी बड़ी गलती करते हैं और स्वीकारते नहीं है।वैसेे भी कांग्रेस इन दिनों राहुल गांधी को सामाजिक न्याय की राजनीति का महानायक बनाने जुटी हुई है। वह कह सकती है जो नायक नहीं महानायक होता है,उसमें गलती स्वीकारने का साहस होता है।
