

मदर्स डे विशेष लेख-माँ: एक एहसास, एक जीवन, एक सम्पूर्ण ब्रह्मांड

प्रस्तावना
माँ… केवल तीन अक्षरों का यह शब्द, अपने भीतर वह गहराई समेटे हुए है जिसे मापने के लिए कोई पैमाना नहीं। यह केवल एक रिश्ते का नाम नहीं, बल्कि एक भाव है, एक शक्ति है, एक अनदेखी ढाल है जो जन्म से पहले और अंतिम सांस तक हमें सुरक्षा देती है। मदर्स डे एक अवसर है उस आत्मा को धन्यवाद देने का, जो बिना किसी स्वार्थ के हमें दुनिया में लाती है, सहेजती है, और संवारती है।
माँ: सबसे पहला स्पर्श, सबसे पहली आवाज़
जब बच्चा इस दुनिया में आता है, सबसे पहले वह माँ की गोद में शरण लेता है। वही उसकी पहली दुनिया बनती है। माँ की कोख वह पहला विद्यालय होती है जहाँ बच्चा धड़कनों की लय से जीवन के सुर सीखता है। यह संबंध खून या डीएनए का नहीं, बल्कि भावना, त्याग और निस्वार्थ प्रेम का होता है।
माँ की आवाज़: जीवन का पहला संगीत
बच्चे के लिए माँ की धुन lullaby (लोरी) नहीं, बल्कि सुरक्षा का पर्याय होती है। उसकी हल्की थपकियाँ जीवन की पहली कविता होती हैं। माँ जब मुस्कुराती है, तो बच्चा खिलखिलाता है। जब माँ उदास होती है, तो बच्चा बेचैन हो उठता है।
माँ की ममता: त्याग और सेवा का जीवंत स्वरूप
माँ खुद भूखी रह सकती है, पर अपने बच्चे के लिए निवाला बचा लेती है। वो बीमार हो सकती है, लेकिन बच्चे को सर्दी से बचाने के लिए अपने कपड़े उसे ओढ़ा देती है। उसकी थाली में सबसे स्वादिष्ट हिस्सा हमेशा बच्चों के लिए ही बचा होता है।
अनकहा संघर्ष
हमने कितनी बार माँ को चुपचाप रसोई में देर रात तक काम करते देखा है? कितनी बार माँ की आँखों में नींद की थकान को नज़रअंदाज़ किया है? माँ अपने बच्चों की ज़रूरतों को हमेशा प्राथमिकता देती है – चाहे वह नयी किताबें हों या स्कूल की फीस, चाहे वह नए कपड़े हों या कोई सपना। खुद के सपनों को वह ख़ामोशी से किनारे कर देती है।
माँ के रूप: हर युग में एक नई परिभाषा
1. पारंपरिक माँ
गाँवों में सुबह चार बजे उठकर चूल्हा जलाने वाली माँ, खेतों में काम करने के बाद भी बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देने वाली माँ, यह वो रूप है जो हर त्याग को सहजता से स्वीकार करती है।
2. आधुनिक माँ
आज की माँ ऑफिस जाती है, मीटिंग अटेंड करती है, लेकिन रात को अपने बच्चे की होमवर्क की कॉपी भी चेक करती है। वह तकनीक से जुड़ी है, लेकिन संवेदनाओं से भी उतनी ही गहराई से जुड़ी रहती है।
3. सिंगल मदर
ऐसी माँ जो अकेली पूरी दुनिया से लड़कर अपने बच्चे को पालती है। वह माँ और पिता दोनों का किरदार निभाती है। उसकी जिंदगी संघर्षों से भरी होती है, लेकिन वह अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने के लिए हर मोर्चे पर डटी रहती है।
माँ: एक अव्यक्त पीड़ा
बहुत बार हम माँ के दर्द को नहीं समझ पाते। माँ अपने दर्द को मुस्कान में ढँक लेती है। जब हम उसके शब्दों को अनसुना करते हैं, उसकी सलाह को टालते हैं, तब वह चुपचाप एक कोने में बैठ जाती है। वो चाहती है कि हम सफल हों, खुश रहें – भले ही हम कभी यह न पूछें कि “माँ, तू ठीक है?”
माँ की भूमिका: केवल घर तक सीमित नहीं
आज माँ शिक्षिका है, डॉक्टर है, इंजीनियर है, वैज्ञानिक है, सैनिक है – वह हर क्षेत्र में अग्रसर है। फिर भी, जब वह अपने बच्चे को स्कूल के लिए तैयार करती है, उसकी आँखों में वही ममता छलकती है जो सदियों से माँ के स्वभाव में रही है।
राजनीति और माँ
इंदिरा गांधी जैसी महिलाएं भी एक माँ थीं। रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपने बेटे के लिए तलवार उठाई थी। भारत की अनेक महिलाओं ने अपने बच्चों के लिए बड़े-बड़े बलिदान दिए हैं – वो इतिहास में दर्ज नहीं हुए, लेकिन वो इतिहास की नींव बने।
बदलते समय में माँ का बदलता स्वरूप
आज की माँ डिजिटल युग की माँ है। वह व्हाट्सएप, ज़ूम, गूगल क्लासरूम से परिचित है। पर उसका दिल आज भी वही पुराने लिफाफों वाली चिट्ठियों को मिस करता है। वह अपने बच्चे की इंस्टाग्राम स्टोरी पर मुस्कुराती है, लेकिन उस पुराने एलबम में रखी बचपन की तस्वीरों को आज भी निहारती है।
एक बेटा/बेटी की नज़र से माँ
जब हम बच्चे थे, तो माँ हमारी दुनिया थी। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े हुए, माँ का महत्व हमें तब समझ आया जब हम घर से दूर हुए। उसके हाथों की रोटियाँ, उसकी झिड़कियाँ, उसकी गोदी – सब कुछ एक ख्वाब बन गया।
कितनी ही बार ऐसा हुआ कि माँ कॉल कर रही है और हमने कहा – “अभी बात नहीं कर सकता।”
पर माँ ने कभी शिकायत नहीं की।
माँ का अकेलापन: एक अनकही सच्चाई
जब बच्चे बड़े होकर अपने रास्ते चुन लेते हैं, तो माँ के जीवन में एक खालीपन आ जाता है। वह खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करती है – मंदिर जाती है, टीवी देखती है, लेकिन उसकी निगाहें हर दिन दरवाज़े पर टिकी रहती हैं।
वृद्धाश्रम की माँएँ
कुछ माँएँ अब वृद्धाश्रमों में हैं – जिनकी कोख से जीवन निकला, वो अब उनके पास नहीं हैं। ये वही माँएँ हैं जिन्होंने कभी गर्मी में पंखा झलकर अपने बच्चों को सुलाया था। आज उनके पास वक़्त है, पर साथ नहीं।

क्या सिर्फ मदर्स डे ही है माँ को याद करने का दिन?
“माँ को एक दिन क्यों?”
यह सवाल कई बार उठता है। सही भी है। माँ को रोज़ महसूस किया जाना चाहिए। रोज़ उसकी चिंता की कद्र होनी चाहिए।
लेकिन मदर्स डे एक ऐसा अवसर है जब हम एक पल ठहर कर कह सकें –
“माँ, तू सबसे अनमोल है।”
“माँ, मैं तुझे समझ न सका, माफ कर देना।”
एक माँ की चिट्ठी उसके बच्चे के नाम
प्रिय बेटे/बेटी,
जब तू पहली बार चला था, मैंने तुझे गिरने से पहले खुद गिरना सीखा।
जब तूने पहली बार स्कूल ज्वाइन किया, मैं घंटों गेट पर खड़ी रही थी।
जब तू पहली बार रोया था किसी हार पर, मैंने दोगुना रोया था – पर तुझे हँसाकर ही चैन पाया।अब तू बड़ा हो गया है, व्यस्त है – ये मैं समझती हूँ।
बस कभी-कभी एक कॉल कर लिया कर।
तेरा ‘माँ’ कहना मेरे दिल की धड़कन है।– तेरी माँ
माँ के लिए कुछ करने का समय
- उसके पैर दबाइए
- उसका हाल पूछिए
- साथ बैठकर बातें कीजिए
- पुराने अल्बम खोलिए
- उसकी मनपसंद मिठाई लाइए
- उसे गले लगाइए
ये सब बातें छोटी लगती हैं, पर माँ के लिए यही सबसे बड़ा सम्मान है।
निष्कर्ष
माँ केवल एक रिश्ता नहीं – वह एक चमत्कार है। हर धर्म, हर जाति, हर देश की माँ एक जैसी होती है – निःस्वार्थ, धैर्यवान, सशक्त।
मदर्स डे हमें याद दिलाता है कि हम जिसे ‘for granted’ लेते हैं, वो हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
आज, इस लेख के माध्यम से हर पाठक से एक विनम्र आग्रह है –
जाइए, अपनी माँ को आज गले लगाइए।
उसे बताइए कि आप उससे कितना प्यार करते हैं।
और ये मत भूलिए – आपके पास माँ है, ये खुद एक वरदान है।
