वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, उठा संवैधानिक संकट का सवाल

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 वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, उठा संवैधानिक संकट का सवाल


नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई शुरू हुई। यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर बड़े बदलाव लाता है, जिसे लेकर देशभर में विवाद और चिंता की लहर दौड़ गई है।


‘वक्फ’ बना वैधता पर सवाल खड़ा करने वाला मुख्य कीवर्ड

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट के समक्ष करीब 70 याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान और RJD सांसद मनोज कुमार झा जैसे नेता शामिल हैं।

File:Supreme Court of India, inside view 07.jpg - Wikimedia Commons

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता है। अधिनियम के प्रावधानों में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और सरकारी निगरानी को बढ़ाया गया है, जिससे मुस्लिम धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ने की आशंका जताई गई है।

वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पारदर्शिता और कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के लिए हैं। लेकिन आलोचकों का मानना है कि सरकार का बढ़ता हस्तक्षेप धार्मिक अधिकारों पर खतरा बन सकता है।


फिलहाल की स्थिति:

सुप्रीम कोर्ट ने अब तक इस अधिनियम पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है। सुनवाई कल, यानी 18 अप्रैल 2025 को दोपहर 2 बजे फिर से शुरू होगी। सभी की नजरें अदालत के अगले कदम और इस कानून की संवैधानिकता पर अंतिम फैसले पर टिकी हैं।


पृष्ठभूमि:

वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को इस वर्ष संसद में पारित किया गया और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद इसे लागू कर दिया गया। इसके तहत वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में केंद्र सरकार की भूमिका को बढ़ाया गया है, साथ ही विवादित संपत्तियों पर नियंत्रण की प्रक्रिया भी संशोधित की गई है।


निष्कर्ष:

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को प्रभावित करेगा, बल्कि यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के प्रश्न पर भी गहरा असर डालेगा।


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