विश्व परिवार दिवस: रिश्तों की गर्माहट और आधुनिक युग की चुनौतियां

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विश्व परिवार दिवस: रिश्तों की गर्माहट और आधुनिक युग की चुनौतियां

प्रस्तावना: परिवार – जीवन की पहली पाठशाला

जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी पहली किलकारी घर के आंगन में गूंजती है। यह घर ही उसका पहला संसार बनता है – जहां वह बोलना सीखता है, चलना सीखता है, और जीवन को समझने लगता है। यही परिवार है – एक ऐसा सामाजिक और भावनात्मक ढांचा जो मनुष्य को केवल जीवन नहीं, बल्कि जीने की कला सिखाता है।

15 मई को ‘विश्व परिवार दिवस’ (International Day of Families) मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1993 में घोषित इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में परिवारों के महत्व को रेखांकित करना और उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में जागरूकता फैलाना है।


इतिहास और उद्देश्य: क्यों जरूरी है परिवार का जश्न मनाना?

संयुक्त राष्ट्र ने 1980 के दशक में महसूस किया कि वैश्विक स्तर पर परिवारों को कई सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 1994 को ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष’ घोषित किया गया और तभी से हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाने लगा।

मुख्य उद्देश्य:

  • पारिवारिक नीतियों को बढ़ावा देना

  • परिवारों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना

  • परिवार में समानता, लिंग न्याय और सहयोग को बढ़ावा देना

  • बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल को प्राथमिकता देना


परिवार की परिभाषा: केवल खून का रिश्ता नहीं, भावनाओं की बुनियाद

आज ‘परिवार’ की परिभाषा बदल रही है। पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे – दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन, सब एक छत के नीचे रहते थे। आजकल एकल परिवार (nuclear family) सामान्य हो गए हैं। कुछ लोग अब ‘चुने हुए परिवार’ (chosen family) की अवधारणा पर विश्वास करते हैं – यानी वे लोग जिन्हें हम दिल से अपनाते हैं, चाहे वो खून के रिश्ते हों या नहीं।

सच्चा परिवार वह है जहां –

  • हमें स्वीकार किया जाता है

  • हमारी भावनाओं को महत्व दिया जाता है

  • कठिन समय में हमें सहारा मिलता है

  • हम बिना डरे, अपनी पहचान जी सकते हैं


परिवार और भारतीय संस्कृति: ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का भाव

भारत में परिवार केवल सामाजिक इकाई नहीं है, यह एक दर्शन है – ‘वसुधैव कुटुंबकम’, यानी “पूरा विश्व ही एक परिवार है।”

भारतीय परिवार की विशेषताएं:

  • संस्कारों की नींव: हर घर में नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है।

  • संवेदनशीलता: भारतीय माता-पिता बच्चों के हर सुख-दुख में सहभागी होते हैं।

  • सामूहिकता: विवाह, उत्सव, तीज-त्योहार मिलकर मनाए जाते हैं।

  • बुजुर्गों का सम्मान: दादा-दादी, नाना-नानी घर की आत्मा होते हैं।

लेकिन समय के साथ-साथ ये मूल्य बदलते जा रहे हैं। अब एकल परिवारों, वर्किंग कपल्स और तेजी से बदलती जीवनशैली ने पारिवारिक ताने-बाने को नई चुनौतियों में डाल दिया है।


आधुनिक युग की चुनौतियां: रिश्तों के बीच बढ़ती दूरियां

आज के दौर में तकनीक ने भले ही हमें वैश्विक रूप से जोड़ा हो, पर भावनात्मक रूप से दूर कर दिया है। स्मार्टफोन, वर्क फ्रॉम होम, सोशल मीडिया – सब कुछ होने के बावजूद परिवारों में संवाद की कमी हो रही है।

कुछ प्रमुख समस्याएं:

  1. समय की कमी: माता-पिता अपने करियर में इतने व्यस्त हैं कि बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते।

  2. पीढ़ियों का टकराव: युवा पीढ़ी स्वतंत्रता चाहती है, बुजुर्ग परंपराएं – ये मतभेद तनाव का कारण बनते हैं।

  3. सांस्कृतिक परिवर्तन: पाश्चात्य प्रभाव के कारण पारंपरिक मूल्यों में गिरावट।

  4. मानसिक स्वास्थ्य पर असर: अकेलापन, डिप्रेशन, संवादहीनता – ये सब पारिवारिक अस्थिरता की निशानियां हैं।

  5. बुजुर्गों की उपेक्षा: कई बुजुर्ग माता-पिता वृद्धाश्रम में जीवन बिता रहे हैं।


विश्व परिवार दिवस: पुनरावृत्ति का एक अवसर

इस दिन हमें रुककर यह सोचना चाहिए कि क्या हम अपने परिवार को पर्याप्त समय, स्नेह और सम्मान दे पा रहे हैं? क्या हमारे घर में संवाद खुला और स्वस्थ है? क्या हम अपने बच्चों को केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि संस्कार भी दे रहे हैं?

कुछ जरूरी कदम:

  • हर दिन 1 घंटा ‘परिवार समय’ (Family Time)

  • ‘नो फोन डिनर’ नीति

  • बुजुर्गों से संवाद – अनुभवों का आदान-प्रदान

  • संडे स्पेशल – मिलकर खाना बनाना, फिल्म देखना, खेलना

  • पारिवारिक फैसलों में सबकी भागीदारी


सशक्त परिवार से सशक्त समाज: सामाजिक दृष्टिकोण

एक स्वस्थ परिवार ही स्वस्थ समाज की नींव है। जब बच्चे प्यार और सुरक्षा के माहौल में पलते हैं, वे आत्मविश्वासी, संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं। जब पति-पत्नी में सहयोग और सम्मान होता है, तो बच्चों को स्वस्थ रिश्तों की परिभाषा समझ में आती है।

सरकार और समाज की भूमिका:

  • परिवार-केंद्रित नीतियां

  • पेरेंटिंग कार्यशालाएं

  • घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता

  • जेंडर न्याय और लिंग समानता

  • बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं


बदलते समय में परिवार के नए रूप: LGBTQ+, सिंगल पेरेंटिंग, और चुने हुए रिश्ते

आज दुनिया पारंपरिक ढांचे से आगे निकल रही है। अब परिवार केवल मम्मी-पापा-बच्चे तक सीमित नहीं हैं। समाज में विविध पारिवारिक ढांचे सामने आ रहे हैं – जैसे:

  • सिंगल पेरेंट्स (एकल अभिभावक)

  • LGBTQ+ परिवार

  • दत्तक ग्रहण (Adoption)

  • लिव-इन रिलेशनशिप्स में पालित बच्चे

  • चुने हुए परिवार (Friends as Family)

यह जरूरी है कि हम हर तरह के परिवार को समान सम्मान दें, क्योंकि प्यार और समर्थन – यही असली परिवार की पहचान है।


मानवीय दृष्टिकोण: कहानी, कविता और अनुभव

एक छोटी सी कहानी:
“रवि एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर मैनेजर था। हर दिन ऑफिस की मीटिंग, प्रेजेंटेशन और क्लाइंट कॉल में व्यस्त। एक दिन उसके 5 साल के बेटे ने पूछा – ‘पापा, आप मुझे कितना टाइम दे सकते हो?’
रवि हँसते हुए बोला – ‘बेटा, अभी तो बिज़ी हूँ, बाद में बात करते हैं।’
बेटा चुपचाप चला गया। अगले दिन रवि के ऑफिस डेस्क पर एक नोट रखा था –
‘पापा, अगर आप टाइम बेचते हो, तो क्या मैं अपनी पॉकेट मनी से थोड़ी देर का टाइम खरीद सकता हूँ?’
रवि की आंखों से आंसू बह निकले।

इस कहानी में वह चुप्पी है जो आज हर परिवार में पनप रही है – एक अदृश्य दीवार जो रिश्तों को जकड़ रही है।


निष्कर्ष: चलो, फिर से परिवार बनाएं – संवाद से, समय से, स्नेह से

विश्व परिवार दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, एक याद है – कि हमारे जीवन की सबसे मजबूत नींव परिवार है।

आज का संकल्प:

  • अपनों के लिए समय निकालें

  • पुरानी रंजिशों को खत्म करें

  • संवाद को प्राथमिकता दें

  • बच्चों को तकनीक के साथ साथ संवेदना भी दें

  • बुजुर्गों का साथ दें, सलाह लें

याद रखें:
“जो परिवार साथ हँसता है, वह हर तूफान झेल सकता है।”

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