

जिसने बनवाया, जिसने बनाया उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं…
सुनील दास
राजनीति में पार्षद हो, विधायक हों वह सफल तब ही माने जातें हैं जब अपने इलाके में ज्यादा से ज्यादा काम करवाते हैं,ऐसे काम करवाते हैं जिससे लोगों को सुविधा होती है,लोगों को राहत मिलती है।विधायक के करवाए काम से लोगों को सुविधा होती है,लोगों को फायदा होता है तो विधायक की वाहवाही भी होती है, तारीफ होती है कि देखो तो इस विधायक तो जनता की कितनी परवाह है। जनता के सुख दुख की कितनी फिक्र है।जनता के प्रति कितना संवेदनशील है, जनता को परेशानी होती है तो विधायक उस परेशानी को महसूस करता है और उस परेशानी को कैसे दूर किया जा सकता है, सोचता है और परेशानी को दूर करने का प्रयास भी करता है।उसके आसपास सलाहकार भी होते हैं जो बताते रहते हैं कि आपको ऐसा काम करना चाहिए जो इससे पहले किसी विधायक ने न किया हो।
सीएम हो, विधायक हो उनके सलाहकार होते है और वह मुफ्त में तो सलाह नहीं देते हैं। वह ऐसा काम कराने को कहते है जिससे विधायक का नाम हो और उनको काम मिले, कमाने का मौका मिले। हो सकता हो कि पूर्व विधायक या विधायकों को उनके सलाहकारों ने यह सलाह दी हो कि हर बड़े चौक-चौराहों पर जनता को धूप,बारिश में ट्रैफिक सिगनल के कारण एक दो मिनट रुकना पड़ता है।ऐसे में उनको कितनी परेशानी होती है। क्यों न उनकी परेशानी खत्म करने के लिए हर सिगनल पर शेड बनवाया जाए। शेड बन जाने पर लोगों का धूप व बारिश में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।शेड वह भी मजबूत लोहे का शेड मुफ्त में बनता नहीं है, खर्च करने के लिए पैसा चाहिए तो विधायक निधि है न, यह पैसा तो सरकार विधायक को अपने क्षेत्र में जनता की सुख सुविधा के लिए खर्च करने के लिए देती है।किसी विधायक या कुछ विधायकों ने अपने क्षेत्र की जनता की सुविधा के लिए चौक चौराहों पर लाखों का शेड बनवा दिया तो क्या बुरा किया।
जब बनवाया गया और बनाया गया तब तो सभी ने विधायक की वाहवाही की कि देखो विधायक ने कितना अच्छा काम किया है।आज तक किसी विधायक ने जनता की सुख सुविधा के लिए ऐसा काम नहीं किया है।तब किसी ने नहीं सोचा था कि यह काम जो करवाया गया है, उससे जनता को नुकसान भी हो सकता है। भविष्य में किसी की जान भी शेड के गिरने से जा सकती है। पैसा विधायक का हो या पार्षद का हो,वह तो होता है खर्च करने के लिए ही।पैसा काम करने वाले को दिया जाता है, काम करने वाला विधायक का ही करीबी हो ताे कोई अपराध थोड़ी न है। जान पहचान के आदमी से काम इसलिए करवाया जाता है कि वह अच्छा काम करेगा।विधायक के तो सब अपने होते हैं। बहुत सारे काम करने व करवाने होते है। सब विधायक के कहने पर जनता की सुविधा के लिए काम करते हैं। इसके एवज में वह भी कुछ पेैसे कमा लेते हैं तो यह तो अपराध थोड़ी न होता है।
अपनी पार्टी सत्ता में होती है ,अपना आदमी विधायक होता है तो ही जनता के लिए काम करने का मौका मिलता है, कमाने का मौका मिलता है। चौक चौराहों पर शेड बनाते वक्त किसी ने नहीं सोचा यह काम वैध है या अवैध है, यह काम करवाना चाहिए या नहीं। सरकार अपनी पार्टी की है,विधायक ने चाहा तो उसका करवाया हर काम वैध हो जाता है. सो वैध समझकर शेड बना दिया गया। लोगों ने मान लिया कि विधायक ने बनवाया है और लोहे का है तो शेड मजबूत ही होगा। मजबूत शेड के नीचे शहर के लोगों को धूप व बारिश में राहत मिलती रही किसी ने सोचा नहीं कि यह गिर सकता है, क्योंकि गिरने की कोई वजह लोग सोच नहीं पाए। किसी न नहीं सोचा कि तेज हवा में यह शेड गिर सकता है। किसीका याद नहीं था कि १४ साल पहले ७० किमी प्रति घंटे की आंधी आई थी और २०२५ के मई में फिर आ सकती है और किसी को पता नहीं था इतनी तेज आंधी में यह मजबूत शेड गिर सकता है।पता रहता तो लोग शेड के नीचे थोड़ी ने खड़े होते। शहर के लोगों को यकीन था कि हमारे विधायक ने बनाया है इसलिए यह तो गिरने वाला शेड नहीं है।पर तेज आंधी में विधायक का बनवाया मजबूत लोहे का शेड गिर गया।यह तो अच्छा हुआ कुछ लोगों को नुकसान हुआ लेकिन किसी की जान नहीं गई।एक पार्टी की सरकार में सड़क पर शेड बनता है और दूसरी पार्टी की सरकार के समय गिर जाए तो राजनीति तो जरूर होती है सो राजनीति शुरू हो गई।
शेड के निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ है इसलिए लोहे का शेड तेज आंधी में गिर गया।अब विधायक व उनके समर्थक कैसे मान सकते हैं कि उनके कराए काम में कोई भ्रष्टाचार हुआ है, वह कह रहे हैं कि शेड तो मजबूत था, वह तो आंधी तेज थी इसलिए गिर गया।तेज आंधी नहीं आती तो शेड नहीं गिरता। हमारा काम तो जनता की सुविधा के लिए मजबूत शेड बनवाना था, हमने मजबूत शेड बना दिया। इसके बाद शेड को मजबूत बनाए रखने के लिए उसकी जांच, मरम्मत का काम तो वर्तमान के विधायक का है। यानी शेड गिरा तो उसके लिए वर्तमान विधायक दोषी हैं। उन्होंने शेड की मजबूती की जांच क्यों नहीं करवाई । उन्होंने जांच करवाई होती तो पता चल जाता कि शेड कमजोर हो गया है,तेज हवा में गिर सकता है।नट बोल्ट ढीले हो गए हैं, इसलिए गिर सकता है।
शेड बनवाते वक्त एक दल का महापौर था और शेड के गिरते वक्त दूसरी महापौर हैं तो इस मामले में महापौर का कुछ कहना भी जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा है कि शहर के दस चौराहों पर ऐसे शेड लगे हैं,इन्हें कब लगाया गया,इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी,किनके कहने पर लगाया गया,इसकी जांच होनी चाहिए,पहले अफसरों को इन शेड की जांच करने के निर्देश दिए जाएंगे ताकि इस तरह की दुर्घटना दोबारा न हो। शहर के महापौर को इतनी चिंता तो होनी ही चाहिए कि एक शेड गिरा है, नौ शेड बचे हैं, वह न गिरे, किसी को नुकसान न हो।जांच के बाद पता चलेगा कि नौ शेड की हालत क्या है।बताया जाता है कि हर स्ट्रक्चर की एक लाइफ होती है,क्या इन स्ट्रक्चरों की लाइफ हो चुकी है।उन्हें मरम्मत की जरूरत है।
बनवाने में खर्च हुआ सो हुआ अब समय समय पर मरम्मत में भी खर्च होगा, सबसे बुरी बात यह है कि निगम हो सरकार कई काम वह करवा देती है लेकिन यह नहीं सोचती है कि भविष्य में इस पर मरम्मत आदि में खर्च होगा वह कौन करेगा। शहर में कभी सुंदरता के लिए फौवारा लगाया है, लोगों की सुविधा के लिए वाटर एटीएम लगाया जाता है, स्मार्ट शौचालय बनाए जाते हैं लेकिन सब ऱखरखाव के लिए खर्च की व्यवस्था न होने के कारण कबाड़ हो जाते हैं।सीएम आते हैं जाते हैं, महापौर आते हैं जाते हैं, सब नई व्यवस्था, नई सुविधा के नाम पर करोड़ो खर्च कर जाते हैं लेकिन इस बात की चिंता कोई नहीं करता है कि यह व्यवस्था,यह सुविधा हमेशा बनी रहनी चाहिए।
एक सरकार के समय की गई व्यवस्था या सुविधा दूसरी सरकार के समय वित्तीय बोझ हो जाती है। इसलिए कोई भी काम किसी सरकार के समय करवाया गया हो उस काम को करवाने व करानेवाले कि जिम्मेदारी होनी चाहिए वह गुणवत्तापूर्ण हो. लोगों को उसका लाभ एक तय समय तक मिलेगा।तय समय तक नहीं मिलता है तो उसकी सजा करवाने वाले व कराने वाले को मिलनी चाहिए।ऐसा होता नहीं है इसलिए एक विधायक के समय घटिया काम होता है और दूसरे विधायक को इसके लिए दोषी कहा जाता है।
