राजनीतिक दलों सहित कोई भी बड़ा नक्सली संगठन हो,उसमें पद की महत्ता तो होती ही है। बहुत सारे पद नीचे से ऊपर तक होते हैं। जो छोेटे पद पर वह बड़ा पद पाना चाहता है। जो बड़ा पद पा लेता है,वह और बड़ा पद चाहता है। जब पद की बड़ी इच्छा होती है और पद के योग्य होते हुए भी किसी तो बड़ा पद नहीं मिलता है तो बडी निराशा होती है, बड़ा गु्स्सा आता है, ऐसा लगता है कि जिंदगी भर जो किया सब बेकार गया। ऐसे में संगठन से ही मोहभंग हो जाता है। संगठन छोड़ देना ही सबसे अच्छा विकल्प लगता है। भागदौड़ की जिंदगी से एक जगह शांति रहने का मन करता है। परिवार के लोग भी जो शांति से रह रहे होते हैं वह भी प्रेरित करते हैं कि भागदौड़ में जिंदगी गुजर गई, अब हमारे साथ आकर शांति से रहो तो यही सबसे अच्छा लगता है।
नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी के मेंबर भूपति उर्फ सोनू दादा की जिंदगी भी तो बरसों से बड़ा नक्सली नेता होने के कारण भागदौड़ की रही है। आज इस प्रदेश में है तो कल उस प्रदेश में। कई बड़ी घटनाओंं के उनके नेतृत्व में अंजाम दिया गया, वह सरकारी एजेंसियों की मोस्ट वाटेंड़ सूची में ऊपर था। किसी ने कल्पना नहीं थी कि वह अपने ६० साथियों के साथ महाराष्ट्र के ग़ढ़चिरौली में पुलिस के सामने सरेंडर कर देगा। उसने सरेंडर किया साथ ही ५४ हथियार भी पुलिस को सौंपे हैं।माना जाता है कि नक्सली लोगों को अपनी विचारधारा व हथियार से बड़ा मोह होता है,वह उसे आसानी से नहीं छो़ड़ते है। ऐसा तब ही होता है जब उनको लगता है कि वह कभी भी मारे जा सकते है या संगठन में कोई बड़ा पद वह चाहते हो और उनको बड़ा पद न मिले।

माना जा रहा है कि नक्सलियों के महासचिव रहे गगन्ना उर्फ बासव राजू उर्फ नंबाला केशव राव को जब सुरक्षा बलों ने घेरकर मार दिया तो उसकी जगह किसी बड़े नक्सली नेता को वह पद दिया जाना था। भूपति को उम्मीद थी कि उसके परिवार के सभी लोगों के नक्सली संगठन में रहने व नक्सलवाद के प्रति उसके समर्पण को देखते हुए संगठन का महासचिव उसको ही बनाया जाएगा। महासचिव पद के लिए भूपति के अलावा देवजी का नाम भी चर्चा में था। माना जाता है कि देवजी का महासचिव बनाए जाने पर भूपति को बहुत बड़ा झटका लगा।यह तो सर्वविदित है कि उसका पूरा परिवार नक्सली था,उसका भाई किसन नक्सली कमांडर था और सुरक्षा बलों के मुठभेड़ में मार दिया गया। किसन की पत्नी सुजाता ने तेलंगाना में सरेंडर किया था। सोनू दादा ओर उसकी पत्नी लंबे समय से नक्सली विचारधारा से जुड़कर काम कर रहे थे। सुजाता के बाद उसकी पत्नी तारक्का ने भी सुरक्षा बलों के दवाब व बड़े नेताओं के मारे जाने के बाद सरेंडर कर दिया था और भूपति ही नक्सली संगठन में रह गया था।
भूपति को नक्सली संगठन में महासचिव का पद नहीं मिला तो वह अपनी पत्नी से मिला तो उसने भूपति को सरेंडर करने के लिए प्रेरित किया.भूपति की पत्नी ने गढ़चिरौली में सरेंडर किया था, वह वहीं रहती है इसलिए भूपति ने भी गढ़चिरौली में सरेंडर किया।अमित शाह की सरेंडर करो या मारे नीति के चलते कई बड़े नक्सली नेता मारे जा चुके हैं, इससे नक्सली सगंठन के छोटे से लेकर बड़े नेताओं में मारे जाने का खौफ पैदा हो गया है और सरकार से लड़ने की जगह सरेंडर कर जान बचाने को ही ज्यादा ठीक समझ रहे है। यही वजह है पिछले दिनों बड़ी संख्या में नक्सली सरेंडर करने लगे हैं। पूरा माड़ डिवीजन सरेंडर करने को तैयार है।
माना जाता है कि भूपति नक्सलियों का बड़ा नेता है वह यूं ही तो सरेंडर नहीं कर सकता,अगर वह यूं ही सरेंडर कर देता है माना जाएगा कि वह मरने से डर गया। वह कायर है, कोई भी बड़ा नेता कायर होने का दाग अपने दामन पर नहीं चाहता है। इसलिए भूपति को किसी बड़े बहाने की जरूरत थी, वह सरेंडर का मन को दो माह से बना रहा था. उसके लिए तो कोई बड़ा बहाना तलाश रहा था उसकी जगह देवजी को महासचिव बना दिए जाने से उसको नक्सली संगठन छोड़कर सरेंडर करने का बहाना मिला। बहाना मिला तो उसने ६० साथियों के साथ सरेंडर कर दिया। अब उस पर यह दाग नहीं लग सकता कि उसने मरने के डर से सरेंडर किया है, अब वह कह सकता है कि नक्सली संगठन में उसकी उपेक्षा की गई इसलिए उसने सरेंडर किया। यह सुरक्षा बलों व साय सरकार की बड़ी सफलता है कि अब नक्सली के बड़े नेता सरेंडर कर रहे हैं या मारे जा रहे हैं। यह सिलसिला यूं चलता रहा तो २०२६ तक नक्सलियों का सफाया बस्तर से होने में कोई संदेह नहीं है।









